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    छत्तीसगढ़

    खनन क्षेत्र में छत्तीसगढ़ की बड़ी छलांग, विकास को मिल रही रफ्तार

    Knock IndiaBy Knock IndiaAugust 28, 2025No Comments8 Mins Read
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    खनन क्षेत्र में छत्तीसगढ़ की बड़ी छलांग, विकास को मिल रही रफ्तार
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    रायपुर। पिछले वित्तीय वर्ष में प्रदेश को खनिज राजस्व के रूप में लगभग 15 हजार करोड़ रुपये की प्राप्ति हुई है। यह उपलब्धि वर्ष 2023-24 की तुलना में लगभग 34 प्रतिशत अधिक है। इस वृद्धि ने न केवल प्रदेश के आर्थिक ढांचे को मजबूती दी है, बल्कि खनन क्षेत्र में नए निवेश और अवसरों के द्वार खोले हैं। राज्य में स्ट्रेटजिक एवं क्रिटिकल मिनरल की खोज राज्य में विकास के एक नए युग की शुरूआत का संकेत देती है।

    1980 से एफसीए के तहत खनन के लिए परिवर्तित वन क्षेत्र: 28,700 हेक्टेयर। इसमें भूमिगत और ऊपरी दोनों खदानें शामिल हैं। (वन क्षेत्र का 0.47%, या कुल क्षेत्रफल का 0.21%)। भूमिगत खदानों में पेड़ों की कटाई नहीं की जाती। इसलिए, ऐसी खदानों में वन क्षेत्र अछूता रहता है। भूमिगत खदानों की संख्या – 27, परिवर्तित क्षेत्र – 12,783 हेक्टेयर। शेष क्षेत्रफल जिसमें कटाई की जाती है: लगभग 16,000 हेक्टेयर (वन क्षेत्र का 0.26%, या कुल क्षेत्रफल का 0.11%)। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में खनन का योगदान। 9.38% जो देश में सबसे अधिक है (स्रोत: सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय और ईवाई विश्लेषण)

    2017 से 2023 तक

    वन आवरण में कुल वृद्धि: 294.75 वर्ग किमी

    वृक्ष आवरण में कुल वृद्धि: 1809.75 वर्ग किमी

    विकास की सम्भावनाएं

    लिथियम, निकल, ग्रेफाइट और क्रोमियम पर काम हो रहा है। केंद्र सरकार की ‘नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन’ के तहत राज्य में 56 परियोजनाओं में से 31 क्रिटिकल खनिजों पर केंद्रित हैं।

    प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार

    छत्तीसगढ़ में रोज़गार सृजन में खनन की महत्वपूर्ण भूमिका है, यह लगभग 2,00,000 लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोज़गार प्रदान करता है और संबद्ध गतिविधियों के माध्यम से लगभग 20 लाख रोज़गारों को अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा देता है। यह इस्पात, बिजली, सीमेंट और एल्युमीनियम जैसे प्रमुख क्षेत्रों को ऊर्जा प्रदान करता है, जो राज्य के कोयला, लौह अयस्क और बॉक्साइट के समृद्ध भंडारों पर निर्भर हैं। ये उद्योग, बदले में, विनिर्माण, रसद और बुनियादी ढाँचे में पर्याप्त रोज़गार के अवसर पैदा करते हैं।

    राजस्व सृजन क्यों महत्वपूर्ण है?

    राज्य को लाभार्थी-आधारित योजनाओं और बुनियादी ढांचे के विकास दोनों के लिए धन की आवश्यकता है, जैसे महतारी वंदन योजना, कृषक उन्नत योजना, तेंदू पत्ता योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, जल जीवन मिशन, विभागीय भर्तियाँ, दीनदयाल उपाध्याय भूमिहीन कृषि मजदूर कल्याण योजना और बिजली सब्सिडी, आदि। सिंचाई के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को भी समर्थन देना आवश्यक है, जैसे बोधघाट बहुउद्देशीय बाँध – जो आठ लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई करने में सक्षम है (राज्य का हिस्सा 50,000 करोड़ रुपये)।

    जनकल्याणकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में आएगी और मजबूती, जनता को मिलेगा सीधा लाभ

    राज्य में प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता उनके आर्थिक विकास को सीधे तौर पर प्रभावित करती है। संसाधन संपन्न राज्यों के पास अन्य राज्यों की तुलना में तेजी से तरक्की के अवसर होते हैं। छत्तीसगढ़ देश के सर्वाधिक खनिज और वन संसाधन संपन्न राज्यों में से एक है, लेकिन पूर्वकालिक परिस्थितियों में संसाधनों का समुचित सदुपयोग ना हो पाने के चलते आर्थिक और सामाजिक तरक्की के रास्ते प्रभावित हुए। यहां कोयला, लौह अयस्क, चूना पत्थर, बॉक्साइट, सोना, निकल, क्रोमियम आदि कुल 28 खनिजों के भंडार मौजूद हैं। वहीं दूसरी तरफ लगभग 50% वन क्षेत्र वाले छत्तीसगढ़ के पास हरियाली का अथाह भंडार है। राज्य के खनिज राजस्व में राज्य के गठन के बाद 30 गुना वृद्धि हुई है, जो कि वित्त वर्ष 2023‑24 में ₹13,000 करोड़ और अप्रैल 2024‑फरवरी 2025 के दौरान ₹11,581 करोड़ रहा। खनिज राजस्व ने राज्य की कुल आय में लगभग 23% का योगदान दिया, जीएसडीपी में लगभग 11% योगदान प्रदान किया। खनिज राजस्व में बढ़ोतरी से जनकल्याणकारी योजनाओं पर राज्य सरकार ज्यादा से ज्यादा खर्च कर सकेगी और आम जनता का जीवन स्तर बेहतर होगा। इस दृष्टिकोण से खनन आम जनता, जंगलों और प्रदेश की समृद्धि के लिए जरूरी है।

    छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्र में वृद्धि

    भारतीय वन स्थिति रिपोर्ट भारतीय वन सर्वेक्षण द्वारा हर दो साल में प्रकाशित की जाती है, जो देश भर के विभिन्न राज्यों में वनों की स्थिति बताती है।

    2021 की रिपोर्ट के अनुसार:

    छत्तीसगढ़ का कुल वन क्षेत्र 2019 में 55611 वर्ग किमी से बढ़कर 2021 में 55717 वर्ग किमी हो गया। इस प्रकार, वन क्षेत्र में 106 वर्ग किमी की वृद्धि हुई। वृक्षारोपण में वृद्धि (अभिलिखित वन क्षेत्र के बाहर 1.0 हेक्टेयर और उससे अधिक के सभी वृक्ष क्षेत्र) – दो वर्षों में 1107 वर्ग किमी।

    2023 की रिपोर्ट के अनुसार:

    छत्तीसगढ़ का कुल वन क्षेत्र 2021 में 55717 वर्ग किमी से बढ़कर 2023 में 55811.75 वर्ग किमी हो गया। इस प्रकार, वन क्षेत्र में वृद्धि हुई। 94.75 वर्ग किमी वृक्षावरण में वृद्धि (अभिलिखित वन क्षेत्र के बाहर 1.0 हेक्टेयर और उससे अधिक क्षेत्रफल वाले सभी वृक्ष क्षेत्र) – दो वर्षों में 702.75 वर्ग किमी

    40-50 लाख प्रति हेक्टेयर मुआवजा

    प्रतिपूरक वनरोपण के अलावा, कैम्पा कोष में प्रति हेक्टेयर 11 से 16 लाख रुपये जमा किए जाते हैं। इसका उपयोग वन क्षेत्रों में विभिन्न कार्यों, जैसे कि क्षरित वनों में वृक्षारोपण और मृदा संरक्षण प्रयासों के लिए किया जाता है। खनन क्षेत्र के आसपास वन्यजीव प्रबंधन योजना (परियोजना लागत का औसतन 2%) के लिए भी धनराशि आवंटित की जाती है, और मृदा नमी संरक्षण योजना का क्रियान्वयन किया जाता है। प्रभावी रूप से, प्रति हेक्टेयर 40-50 लाख रुपये जमा किए जाते हैं।

    ई‑नीलामी और ब्लॉक आवंटन

    अब तक 44 खनिज ब्लॉक की ई‑नीलामी हो चुकी है, जिनमें चूना पत्थर, लौह अयस्क, बॉक्साइट, सोना, निकल‑क्रोमियम, ग्रेफाइट, ग्लूकोनाइट और लिथियम शामिल हैं। भारत का पहला लिथियम ब्लॉक (कोरबा, कटघोरा) छत्तीसगढ़ में नीलामी के माध्यम से सफलतापूर्वक आवंटित हुआ। 2025 में लौह अयस्क के नए ब्लॉकों की नीलामी की प्रक्रिया तेज़ है, खासकर बैलाडीला क्षेत्र में।

    खनिज राजस्व: ओडिशा और छत्तीसगढ़

    वित्त वर्ष 2018-19 में ओडिशा का खनन राजस्व 10,499 करोड़ रुपये था, जबकि इसी अवधि में छत्तीसगढ़ का राजस्व 6110 करोड़ रुपये था। वित्त वर्ष 2024-25 में, ओडिशा का खनन राजस्व लगभग 45,000 करोड़ रुपये हो गया, जबकि छत्तीसगढ़ का खनन राजस्व लगभग 14,000 करोड़ रुपये था।

    ओडिशा राज्य में उल्लेखनीय राजस्व वृद्धि मुख्य रूप से नीलाम या आवंटित खनिज ब्लॉकों के संचालन के कारण है। छत्तीसगढ़ में समान राजस्व वृद्धि हासिल करने के लिए, आवंटित या नीलाम किए गए खनिज ब्लॉकों के संचालन में तेजी लाना महत्वपूर्ण है, जो ओडिशा में मिली सफलता को दर्शाता है।

    चरणबद्ध कटाई (5-6% / वर्ष)

    किसी भी खनन मामले में एफसीए की मंजूरी के अनुसार, पेड़ों की कटाई हमेशा चरणबद्ध तरीके से की जाती है। उदाहरण के लिए, आरवीवीएनएल के मामले में, पीईकेबी खदान ने 1,900 हेक्टेयर क्षेत्र को डायवर्ट किया, और औसतन 80 से 90 हेक्टेयर प्रति वर्ष पेड़ों की कटाई की जाती है। चूँकि खनन 40 से 50 वर्षों तक चलता है, इसलिए खनन क्षेत्र में प्रभावित कुल पेड़ों में से केवल 5 से 6% पेड़ ही हर साल काटे जाते हैं।

    छत्तीसगढ़ ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि दर्ज की है। मेसर्स डेक्कन गोल्ड माइनिंग लिमिटेड (DGML) ने राज्य में हाल ही में प्राप्त संयुक्त अनुज्ञा क्षेत्र में निकल (Nickel), क्रोमियम (Chromium) और प्लेटिनम समूह के तत्वों (PGEs) की खोज की है। यह उल्लेखनीय उपलब्धि छत्तीसगढ़ में रणनीतिक एवं महत्वपूर्ण खनिजों की खोज और उनके सतत विकास के एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है। यह खोज महासमुंद जिले के भालुकोना–जामनीडीह निकल, क्रोमियम और PGE ब्लॉक में हुई है, जो लगभग 3000 हेक्टेयर में फैला हुआ है। इस क्षेत्र का प्रारंभिक अन्वेषण भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) द्वारा G4 स्तर पर किया गया था, जिसमें इन खनिजों की उपस्थिति की संभावना प्रकट हुई थी। इस आधार पर, छत्तीसगढ़ शासन के खनिज साधन विभाग के अंतर्गत भूविज्ञान एवं खनिकर्म संचालनालय (DGM) ने विस्तृत भू-वैज्ञानिक आंकड़ों का संकलन कर ब्लॉक की ई-नीलामी प्रक्रिया संपन्न कराई।

    6 मार्च 2023 को ब्लॉक का सफलतापूर्वक नीलामीकरण हुआ, जिसमें DGML ने 21% सबसे ऊंची बोली लगाकर इसे हासिल किया। इसके पश्चात DGM छत्तीसगढ़ द्वारा अन्वेषण कार्यों को शीघ्र गति देने हेतु तकनीकी मार्गदर्शन और निरंतर सहयोग प्रदान किया गया। आवश्यक वन और पर्यावरणीय स्वीकृतियां प्राप्त होने के बाद, DGML ने अन्वेषण कार्यों की शुरुआत की, जिनमें विस्तृत भू-वैज्ञानिक मानचित्रण, रॉक चिप सैम्पलिंग, ड्रोन आधारित मैग्नेटिक सर्वेक्षण तथा इंड्यूस्ड पोलराइजेशन (IP) सर्वेक्षण शामिल हैं। प्रारंभिक परिणाम उत्साहजनक रहे हैं। अब तक लगभग 700 मीटर लंबी खनिजीकृत पट्टी की पहचान की गई है, जो संभावित मैफिक-अल्ट्रामैफिक चट्टान संरचनाओं में स्थित है। भूभौतिकीय सर्वेक्षणों से प्राप्त संकेतों के अनुसार 300 मीटर गहराई तक सल्फाइड खनिजों की उपस्थिति दर्ज की गई है, जो इस ब्लॉक की समृद्ध खनिज क्षमता को रेखांकित करती है। भालुकोना ब्लॉक के समीप ही स्थित केलवरडबरी निकल, क्रोमियम एवं PGE ब्लॉक पूर्व में एक कंपनी लिमिटेड को नीलामी के माध्यम से प्रदान किया गया था। इन दोनों ब्लॉकों के संयुक्त विकास से महासमुंद क्षेत्र को देश के रणनीतिक खनिजों के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित किए जाने की संभावनाएं सशक्त हुई हैं।

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