सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र और दिल्ली सरकार से उस याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें सिंगल मदर के बच्चों के लिए ओबीसी प्रमाणपत्र जारी करने के नियमों में संशोधन की मांग की गई है।
कार्रवाई संवैधानिक प्रविधानों के खिलाफ
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस आगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने दिल्ली की एक महिला द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश पारित किया। याचिका में कहा गया है कि वर्तमान दिशा-निर्देशों के अनुसार, सिंगल मदर के ओबीसी प्रमाणपत्र के आधार पर बच्चे को ओबीसी प्रमाणपत्र नहीं दिया जा सकता और आवेदक को केवल पितृ पक्ष से ऐसा प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होता है। याचिकाकर्ता ने दावा किया गया है कि यह कार्रवाई संवैधानिक प्रविधानों के खिलाफ है।
अधिवक्ता विपिन कुमार के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि सिंगल मदर यानी एकल अभिभावक (महिला) के बच्चों को उनकी मां के ओबीसी प्रमाणपत्र के आधार पर ओबीसी प्रमाणपत्र जारी न करना, उन बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन है जो अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित हैं।
अनुसूचित जनजाति वर्ग को भी तो होता है प्रमाणपत्र जारी
याचिका में यह भी कहा गया है कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग की सिंगल मदर के बच्चों को उनकी मां के प्रमाणपत्र के आधार पर जाति प्रमाणपत्र दिया जाता है लेकिन ओबीसी के मामले में ऐसा नहीं है। इसमें कहा गया है कि सिंगल मदर के बच्चों को ओबीसी प्रमाणपत्र जारी करने के लिए अधिकारियों द्वारा पिता के ओबीसी प्रमाणपत्र या पितृ पक्ष पर जोर देना उन बच्चों के अधिकारों के खिलाफ है जिन्हें उनकी मां ने पाला है।
याचिका में दिल्ली सरकार के ओबीसी प्रमाणपत्र जारी करने के दिशा-निर्देशों का उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया है कि दिल्ली में रहने वाला कोई भी व्यक्ति जो ओबीसी प्रमाणपत्र के लिए आवेदन करना चाहता है, उसे पिता, दादा या चाचा जैसे किसी पितृ पक्ष के संबंधी का ओबीसी प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होता है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि ओबीसी वर्ग की सिंगल मदर जो अपने गोद लिए बच्चे के लिए अपने प्रमाणपत्र के आधार पर ऐसा प्रमाणपत्र प्राप्त करना चाहती है, उसे आवेदन करने की अनुमति नहीं दी जाती क्योंकि वह अपने पति का ओबीसी प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने में असमर्थ होती है।
सुप्रीम कोर्ट ने 'वरिष्ठ अधिवक्ता', एओआर के लिए नियमावली पर फैसला सुरक्षित रखा
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को न्याय प्रणाली के सुचारू कामकाज के लिए वकीलों के वरिष्ठ पदनाम और एडवोकेट आन रिकार्ड (एओआर) के लिए नियमावली बनाने पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस आगस्टिन जार्ज मसीह की पीठ ने कहा कि दो जजों की पीठ 2017 के फैसले से उपजे मुद्दों का निस्तारण नहीं कर सकती, जिसमें वकीलों को वरिष्ठ पद देने की प्रक्रिया तैयार की गई थी और जिसे तीन न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया था।
पीठ ने 12 अक्टूबर 2017 को फैसला सुनाया था
पीठ ने कहा कि हम वरिष्ठ पद पर न्याय मित्र एस मुरलीधर, सालिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह के सुझावों को दर्ज करेंगे और निर्णय लेने के लिए इसे प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखेंगेज्। तीन पूर्व न्यायाधीशों, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा की एक पूर्ववर्ती पीठ ने 12 अक्टूबर 2017 को फैसला सुनाया था। जस्टिस ओका ने कहा कि आखिरकार उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी अयोग्य व्यक्ति को वरिष्ठ वकील के रूप में नामित नहीं किया जाना चाहिए और जो भी योग्य है उसे बाहर नहीं किया जाना चाहिए।
दिल्ली हाई कोर्ट के 70 वकीलों को वरिष्ठ पद दिए जाने के खिलाफ याचिका खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के 70 वकीलों को वरिष्ठ पद दिए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील मैथ्यूज जे नेदुम्परा की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला दिया है। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने नेदुम्परा को फटकार लगाते हुए पूछा था कि आप कितने न्यायाधीशों के नाम बता सकते हैं, जिनके बच्चों को वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया है। हमें लगता है कि संस्था के खिलाफ निराधार आरोप लगाए गए हैं।
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