प्रदोष व्रत का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। लेकिन, भाद्रपद माह में आने वाला पहला प्रदोष व्रत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन है। भाद्रपद माह के पहले प्रदोष व्रत पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना की जाती है। इस व्रत में प्रदोष काल में पूजा करने का विशेष महत्व है। इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। आइए जानते हैं भाद्रपद मास का पहला प्रदोष व्रत कब रखा जाएगा।
कब है भाद्रपद माह का पहला प्रदोष व्रत
भाद्रपद माह का पहला प्रदोष व्रत 31 अगस्त शनिवार के दिन रखा जाएगा। इसलिए इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाएगा। दरअसल, त्रयोदशी तिथि का आरंभ 30 तारीख की देर रात में 2 बजकर 26 मिनट पर होगा और 31 तारीख को देर रात 3 बजकर 41 मिनट तक त्रयोदशी तिथि रहेगी। उदया काल में त्रयोदशी तिथि 31 तारीख में होने के कारण भाद्रपद माह का पहला शनि प्रदोष व्रत 31 तारीख को ही रखा जाएगा।
प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त
शनि प्रदोष व्रत के दिन शाम में 5 बजकर 44 मिनट से 7 बजकर 44 मिनट तक पूजा के लिए सबसे अच्छा मुहूर्त है। इस दौरान प्रदोष व्रत की पूजा करने सर्वोत्तम फलदायी रहेगा।
प्रदोष व्रत पूजा विधि
0 प्रदोष व्रत की विधि के अनुसार, सुबह उठने के साथ ही आपका व्रत शुरु हो जाता है।
0 इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के साथ अपने पूजा स्थल की अच्छे से साफ सफाई करें।
0 शाम के पूजन से पहले ही पूजा की सारी तैयारी कर लें। इसके बाद एक चौकी पर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा रखें और इसके बाद दोनों का अभिषेक करें।
0 फिर वस्त्र आदि अर्पित कर फूल आदि भगवान को अर्पित करें और देसी घी का दीपक जलाएं। इस बात का ख्याल रखें की भगवान को गुड़हल, कनेर के फूल और बेलपत्र के पत्ते भी चढ़ाएं। अंत में भगवान के भोग में हलवा या खीर जरूर शामिल करें।