Subhas Ki Baat : आदिवासी बाहुल्य छत्तीसगढ़ को उसके स्थापना के 23 साल बाद एक ऐसा जनजाति मुख्यमंत्री मिला है, जिसके जमीन से जुड़े आदिवासी होने पर कोई सवाल नहीं है। विधानसभा चुनाव 2023 में शानदार जीत के बाद भाजपा विधायक दल ने पार्टी के वरिष्ठ नेता विष्णुदेव साय को अपना नेता चुन लिया है।
इस तरह से इस प्रदेश की कमान एक आदिवासी नेता के हाथों में सौंपने का ख्वाब पूरा हो गया है। विष्णुदेव साय बेहद सौम्य, जमीनी समझ वाले सुलझे हुए नेता हैं। उनके पास पंच से लेकर केन्द्रीय मंत्री रहने का अनुभव है। शासन के साथ ही संगठन में वे दो बार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं।
इस तरह कह सकते हैं एक ऐसा नेता जिसका किसी तरह के विवाद से नाता नहीं है, जिसे शासन और संगठन दोनों में रहकर काम करने का बड़ा लंबा अनुभव है, ऐसा नेता छत्तीसगढ़ की कमान संभाल रहा है। ये इस प्रदेश की तासीर के साथ भी फिट बैठता है।
साय ने चुनाव के दौरान किए गए वादों को पूरा करने के लिए कमर कस ली है। उन्होंने पहले ही कह दिया है कि मुख्यमंत्री के तौर पर मैं अपनी सरकार के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गारंटी को पूरा करने की कोशिश करूंगा। उन्होंने कहा कि आवास योजना के हितग्राहियों के लिए 18 लाख आवास स्वीकृत करना नई छत्तीसगढ़ सरकार का पहला कार्य होगा। जशपुर जिले में जन्म लेकर जनसेवा करते हुए
कई भूमिकाओं में जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के बाद भी विष्णुदेव साय बेहद सहज नजर आते हैं। यहां के आदिवासियों की लगभग 42 उपजातियां हैं। इनमें से गोंड़ सबसे बड़ा समूह है, जो प्रदेश में सर्वत्र पाये जाते हैं। इसके पश्चात् कंवर, हल्बा, भतरा, उरांव एवं बिंझवार प्रमुख बड़े आदिवासी समूह हैं। प्रदेश के बैगा, अबूझमाडिय़ा, कमार, बिरहोर और पहाड़ी कोरवा विशेष पिछड़ी आदिवासी जातियां हैं जो कि प्रकृति के करीब रहकर अपना जीवन यापन करती हैं।
आदिवासी जीवन पर कवि विनोद कुमार शुक्ल की कविता है-
जितने सभ्य होते हैं
उतने अस्वाभाविक।
आदिवासी जो स्वाभाविक हैं
उन्हें हमारी तरह सभ्य होना है
हमारी तरह अस्वाभाविक।
जंगल का चंद्रमा
असभ्य चंद्रमा है
इस बार पूर्णिमा के उजाले में
आदिवासी खुले में इक_े होने से
डरे हुए हैं
और पेड़ों के अंधेरे में दुबके
विलाप कर रहे हैं
क्योंकि एक हत्यारा शहर
बिजली की रोशनी से
जगमगाता हुआ
सभ्यता के मंच पर बसा हुआ है।
विनोद कुमार शुक्ल की कविता आदिवासियों की निश्छल और साफ-सुफरी जिंदगी को बखूबी बयां करती है। अच्छी बात ये है कि जनजाति क्षेत्र से मुख्यमंत्री चुने जाने से वह आदिवासी इलाके की चुनौतियों, परिस्थितियों और मनोभाव को समझेंगे और जनजाति समाजों से बातचीत कर आदिवासी क्षेत्रों के विकास को नई गति देंगे।
इससे पहले जनजाति समाज से द्रोपदी मुर्मू राष्ट्रपति बनी हैं और अब छत्तीसगढ़ में जनजाति समाज से विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिलना आदिवासी वर्ग के लिए बड़ी बात है। जनजाति वर्ग के लोग कम कहते हैं और करते अधिक हैं। इसी तरह नए मुख्यमंत्री साय भी काम करेंगे। वे जनजाति समाज से होने के कारण समाज के मनोभाव को समझेंगे।
सीएम साय के सामने आदिवासी इलाके के विकास के लिए अलग से योजना बनाने पर भी विचार करना होगा। सामान्य तौर पर विकास को औद्योगिकीकरण से मापा जाता है। अवधारणा है कि औद्योगिकीकरण होगा तो विकास होगा। औद्योगिकीकरण आवश्यक है, लेकिन प्राकृतिक संसाधनों का विनाश करने पर विकास नहीं विनाश होगा। हम उम्मीद करते हैं, मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय जनजाति समाज की भावना को गहराई से समझेंगे और उनसे बातचीत कर आदिवासी क्षेत्रों के लिए विकास की नई राह गढ़ेंगे।
हालांकि, विष्णुदेव साय पहले आदिवासी सीएम नहीं हैं। इससे पहले मध्यप्रदेश में भी आदिवासी मुख्यमंत्री रह चुका है। सारंगढ़ रियासत के राजा नरेशचंद्र सिंह को कुछ ही दिन मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री रहने का मौका मिला। बात मार्च 1969 की है। जब गोविंद नारायण के इस्तीफे के बाद राजा नरेशचंद्र सिंह मुख्यमंत्री बने।
राजा नरेशचंद्र सिंह ने तेरह दिनों के मुख्यमंत्रित्व में बिखरती संविद सरकार को संभालने के बहुत प्रयास किए ,लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह दर्जनों विधायकों के साथ वापस कांग्रेस में चले गए। तकनीकी रूप से नरेशचंद्र सिंह मध्यप्रदेश के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री थे। उधर, पड़ोसी राज्य झारखंड में ज्यादातर सीएम मुख्यमंत्री आदिवासी हैं। इनमें पूर्व सीएम रघुवर दास ही सिर्फ गैर आदिवासी सीएम रहे हैं। वर्तमान में भी वहां आदिवासी सीएम हेमंत सीएम सोरेन कार्यरत हैं।
उम्मीद की जा रही है कि आदिवासी के मुख्यमंत्री बनने से जनजातियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव का समय आ गया है। आदिवासी मुख्यमंत्री होने से छत्तीसगढ़ के जनजाति समाज को नई दिशा मिलेगी।
जल, जंगल और जमीन से जुड़े आदिवासी जनजीवन को लेकर प्रसंगवश कविता वासम की कविता याद आ रही है-
नमक तुम्हारे लिए स्वादिष्ट खाना बनाने वाला
पदार्थ मात्र है
तुम्हारे रसोई घर में इसकी भरमार होती है
मेरी देह के पसीने की गंध में भी तुम्हें
नमक का खारापन लगता है
मुझे चूमकर भी तुम बता सकते हो नमक का स्वाद
नमक तुम्हारे लिए उतना ही ज़रूरी होता है
जितना दाल-चावल
ठीक इसके विपरीत हमारे लिए नमक उतना ही ज़रूरी है
जितना जल, जंगल, ज़मीन
नमक हमारे लिए स्वाद बढ़ाने वाली चीज़ नहीं
बल्कि एक बहाना है तुम तक पहुँच पाने का
हमारे यहाँ नमक की खेती नहीं होती वरन उगा लेते
बोरा भर नमक धान की तरह
नमक की लत ने हमें भी व्यापार करना सिखा दिया
झोला भर टोरा, महुआ, अमचूर और चिरौंजी के बदले तुम्हारा एक सोली नमक
स्वाद बदलकर रख देता है मुँह का
तुम्हें नमक की क़ीमत का अंदाज़ा नहीं
चूँकि तुम्हारी दुनिया में नमक ही नमक है
सस्ता और सुलभ
पर हमारी पहुँच से आज भी हज़ारों किलोमीटर दूर है नमक
कि सोली भर नमक कमाने के लिए हमारे कंधे उठाते हैं
काँवड़ भर सपने
खोदते हैं पताल भर गोदी अँधेरी पगडंडियों को
पाटने के लिए
लगाते हैं मील का पत्थर
अपनी आदिम सभ्यता छुपाने के लिए
ताकि खिसक सके दो-चार किलोमीटर और
सूरज की सीध में
बावजूद नमक का स्वाद हमेशा नमकीन नहीं होता
कि नमक का स्वाद कभी-कभी पाँव के छालों की टीस जितना क़ीमती और
कभी-कभी बंदूक़ की गोली से निकलने वाले
बारूद की गंध जैसा तीखा
तो कभी-कभी आँखों की पुतलियों पर दम तोड़ चुके
कुछ सफ़ेद ख्वाबों से भी फीका होता है
नमक की आज़ादी के लिए लड़ी गई थी एक लड़ाई
सोचती हूँ चुपके से इनके कानों में किसी ऐसी ही
लड़ाई के प्रारंभ का बिगुल फूँक दूँ क्या?
ताकि जान सकें ये भी नमक का असली स्वाद!