कहा जा रहा है कि दुनिया की 7000 भाषाओं में से कुछ भाषाएं हर साल धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं। अगर पहले के आंकड़ों पर गौर करें तो एक दशक पहले हर तीन महीने में एक भाषा विलुप्त हो रही थी, लेकिन अब यह आंकड़ा तेजी से बढ़ने लगा है। 2019 तक भाषाओं के विलुप्त होने की रफ्तार और बढ़ गई है। अब ताजा आंकड़ों में हर 40 दिन में एक भाषा विलुप्त हो रही है। दूसरे शब्दों में कहें तो एक साल में 9 भाषाएं लुप्त हो रही हैं। संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूनेस्को ने चेतावनी दी है कि अगर ऐसा ही चलता रहा और हमने अपनी आदतें नहीं सुधारीं तो सदी के अंत तक दुनिया से 3000 भाषाएं लुप्त हो जाएंगी।
आमतौर पर भाषाओं के विलुप्त होने का मुख्य कारण यह है कि माता-पिता अपने बच्चों से उनकी मातृभाषा में बात करना बंद कर रहे हैं। वहीं कई समुदाय अपनी लिखी हुई चीजें नहीं पढ़ पा रहे हैं। लुप्त होने की दर लगातार बढ़ रही है। संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक एजेंसी यूनेस्को ने अनुमान लगाया है कि सदी के अंत तक दुनिया की आधी भाषाएं विलुप्त हो जाएंगी। कुछ भाषाएँ अपने अंतिम बोलने वालों के साथ ही लुप्त हो रही हैं। हज़ारों भाषाएँ विलुप्त होने के कगार पर हैं, क्योंकि उनके बोलने वालों की संख्या कम हो गई है।
इसके साथ ही ऐसी भाषाएँ न तो स्कूलों में बोली जा रही हैं और न ही कार्यस्थलों पर। ज़्यादातर समुदायों में भाषाओं को बचाने की मुहिम चल रही है। उन्हें लगता है कि दुनिया में भाषाओं के वर्चस्व के कारण उनकी परंपरा खत्म हो सकती है। उनका मानना है कि अंग्रेज़ी और हिंदी जैसी भाषाओं के कारण क्षेत्रीय बोलियाँ खत्म हो सकती हैं।
ऑनलाइन टूल- विकिपीडिया का सहारा
नाइजीरिया के टोची प्रीशियस भी अपनी पारंपरिक भाषा इग्बो को लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है कि समुदाय की परंपरा और संस्कृति भाषा से जुड़ी हुई है। इसलिए इसका संरक्षण ज़रूरी है। अपनी भाषा को बचाने के लिए उन्होंने ऑनलाइन टूल- विकिपीडिया का सहारा लिया है।
पुस्तकों के ज़रिए बचाने की कोशिश
म्यांमार के रोहिंग्या बांग्लादेश में हैं। शरणार्थियों ने अपनी हनीफ़ी भाषा को किताब में लिखकर और उसके लिए वीडियो रिकॉर्ड करके संरक्षित किया है। इन्हें कैंपों में वितरित किया जा रहा है। भारत के पूर्वी बिहार में अंगिका भाषा बोलने वाले अमृत सूफी ने अपनी बोली को बचाने के लिए वीडियो रिकॉर्ड किए हैं। वे ट्रांसक्रिप्शन और अनुवाद भी उपलब्ध करा रहे हैं। अगर इसके साथ देखा जाए तो भारत की ये भाषाएं सबसे ज्यादा खतरे में हैं।
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