नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख के देपांग और डेमचोक क्षेत्रों में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच पीछे हटने की प्रक्रिया अब लगभग पूरी हो चुकी है। रक्षा सूत्रों के अनुसार, दोनों सेनाएं – भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) – वर्तमान में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के समीप संवेदनशील क्षेत्रों में अपने कर्मियों की वापसी और सैन्य बुनियादी ढांचे को समाप्त करने की पुष्टि कर रही हैं।
इस प्रक्रिया के तहत, सत्यापन दोनों सेनाओं द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा, जिसमें सहमत शर्तों के अनुसार पदों को खाली करने और प्रतिष्ठानों को हटाने का अध्याय शामिल है। सूत्रों का कहना है कि यह सब कुछ विश्वास के आधार पर किया जा रहा है, जो दोनों देशों के बीच सैन्य सहयोग को मजबूत करने का संकेत है।
हालांकि, अभी तक गलवान क्षेत्र सहित चार बफर जोन के लिए कोई चर्चा नहीं हुई है। कोर कमांडर स्तर पर चर्चा के बाद ही बफर जोन में गश्त के पुनरारंभ पर निर्णय लिया जाएगा, जो डेमचोक और देपसांग क्षेत्रों में गश्त की सफल शुरुआत के बाद होगा।
दोनों देशों के स्थानीय सैन्य कमांडर प्रतिदिन सुबह हॉटलाइन पर चर्चा कर नियोजित कार्यों का समन्वय करते हैं। इसके अतिरिक्त, वे नियमित रूप से व्यक्तिगत बैठकें कर प्रोटोकॉल की समीक्षा और संरेखण करते हैं।
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 27 अक्टूबर को यह बताया कि भारत और चीन एलएसी पर गश्त फिर से शुरू करने के लिए सहमत हो गए हैं, जो अप्रैल 2020 में प्रारंभ हुए सीमा गतिरोध को खत्म करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। जयशंकर ने यह भी स्पष्ट किया कि इस प्रक्रिया को लागू करने में समय लगेगा और उम्मीद की जा रही है कि 2020 की स्थिति को बहाल किया जा सकेगा।
हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि एलएसी पर गश्त करने के संबंध में चीन के साथ हुए समझौते का यह अर्थ नहीं है कि दोनों देशों के बीच के अन्य मुद्दे अब हल हो गए हैं।