Karwa Chauth 2024: करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए एक विशेष अवसर है. इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. यह व्रत हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और रात को चंद्रमा को देखकर अपनी पूजा-अर्चना करती हैं. चलिए जानते हैं कब और कैसे शुरू हुई करवा चौथ मनाने की परंपरा?
करवा चौथ शब्द ‘करवा’ (मिट्टी का बरतन) और ‘चौथ’ (चतुर्थी) से मिलकर बना है. इस दिन करवे की पूजा का विशेष महत्व है. महिलाओं का मानना है कि इस व्रत से पति-पत्नी के रिश्ते में और भी मजबूती आती है. करवा चौथ का व्रत सदियों से चलता आ रहा है और इसके पीछे कई धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं हैं.
महत्व
इस व्रत की एक प्रसिद्ध कथा है जिसमें देवताओं और दानवों के बीच युद्ध का जिक्र है. जब देवता हारने लगे, तो ब्रह्मा देव ने देवताओं की पत्नियों से कहा कि वे अपने पतियों के लिए व्रत रखें. इस व्रत के प्रभाव से देवताओं को युद्ध में विजय मिली. इसी दिन चंद्रमा की उपासना करने के बाद पत्नियों ने अपना व्रत खोला, जिससे चंद्रमा को देखकर व्रत खोलने की परंपरा शुरू हुई.
उत्तर-पश्चिम भारत की परंपरा
एक अन्य मान्यता के अनुसार, करवा चौथ की परंपरा भारत के उत्तर-पश्चिमी राज्यों से शुरू हुई थी. जब मुगलों ने राजाओं पर आक्रमण किया, तो सैनिकों की पत्नियों ने अपने पतियों की रक्षा के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत रखा. तब से यह परंपरा चली आ रही है, विशेष रूप से पंजाब, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में.
करवा चौथ की खुशियां
करवा चौथ का यह व्रत केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह प्यार और विश्वास का प्रतीक भी है. महिलाएं इस दिन सजा-सवरा कर अपने पतियों के लिए विशेष तैयारियां करती हैं. यह पर्व न केवल पारिवारिक बंधनों को मजबूत करता है, बल्कि एक-दूसरे के प्रति समर्पण और स्नेह की भावना को भी बढ़ाता है.