हल षष्ठी का व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को रखा जाता है। कई स्थानों पर इस व्रत को ‘ललही छठ’ या ‘हर छठ’ के नाम से भी बोला जाता है। भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलरामजी को यह व्रत समर्पित होता है। यह व्रत महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु के लिए और बेहतर स्वास्थ्य व खुशहाली के लिए करती हैं। इस साल हल षष्ठी का व्रत 25 अगस्त को रखा जाएगा। जिन दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई है, वे भी इस व्रत को कर सकते हैं। भगवान के आशीर्वाद से उनकी भी खाली झोली भर जाएगी। हल षष्ठी का व्रत भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलरामजी के जन्मोत्सव की खुशियां मनाने के लिए किया जाता है।
मान्यता है कि भादों मास की कृष्ण षष्ठी को ही बलरामजी का जन्म हुआ था और इनके जन्म की खुशी में महिलाएं अपने संतान की दीर्घायु के लिए व्रत करती हैं। इस व्रत को करने से बलरामजी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं हल से जोती गई फसल की कोई चीज नहीं खाती हैं और न ही जमीन में उगाई कोई चीज खाई हैं। दरअसल हल को बलरामजी का शस्त्र माना गया है। इसलिए हल से जोती गई चीजों का प्रयोग वर्जित माना जाता है। इस दिन तालाब में उगाई गई चीजें खाकर व्रत रखती हैं। आइए जानते हैं इस व्रत की तिथि कब से कब तक है और इस व्रत को रखने में महिलाओं को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
कब है हलषष्ठी व्रत की तिथि
भाद्रमास की कृष्ण षष्ठी तिथि 24 अगस्त को दोपहर में 12 बजकर 30 मिनट से आरंभ होगी और 25 अगस्त को सुबह 10 बजकर 11 मिनट पर समाप्त होगी। इस प्रकार से उदया तिथि की मान्यता के अनुसार हल षष्ठी का व्रत महिलाएं 25 अगस्त को रखेंगी।
हलषष्ठी व्रत का महत्व
हलषष्ठी का व्रत महिलाएं संतान सुख की कामना के लिए करती हैं। इस व्रत को करने से आपकी संतान की आयु लंबी होती हैं। यह व्रत संतान की आयु को बढ़ाने वाला माना जाता है। आपको इस व्रत को करने से आपको सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई और शेषनाग के अवतार माने जाने वाले बलराम का जन्म हुआ था। हल षष्ठी के दिन महिलाओं को महुआ की दातुन करनी होती है और साथ ही महुआ खाना भी जरूरी होता है।
हलषष्ठी व्रत की पूजा कब की जाती है
हरछठ व्रत की पूजा दोपहर में करने का विधान है। महिलाएं सुबह 11 बजे से दोपहर 1 बजे तक पूजा करती हैं। इस दिन गाय के दूध से बने खाद्य पदार्थों और जमीन से उगी हुई चीजों का प्रयोग नहीं किया जाता है। सिर्फ तालाब में पैदा हुई चीजें ही खाई जाती हैं। महिलाएं अपने आंगन में झरबेरी, पलाश और कांसी की टहनी लगाकर पूजा करती हैं और छठ्ठी माता का चित्र बनाकर उनको सात अनाजों को मिलाकर बनाया हुआ सतनजा और दही-तिन्नी के चावल से भोग लगाती हैं। उसके बाद हल षष्ठी की कथा सुनती हैं।
महिलाएं भूलकर भी न करें ये गलतियां
० हलषष्ठी के दिन व्रत रखने वाली महिलाएं भूलकर भी हल से जोती गई धरती पर न चलें।
० हल चले जमीन का अन्न, फल, साग-सब्जी का सेवन करना वर्जित होता है।
० इस दिन तामसिक भोजन जैसे प्याज, लहसुन का प्रयोग भूलकर भी न करें।
० गाय के दूध, दही और घी का प्रयोग ना करें।
० बच्चों व बड़ों का अनादर ना करें और भूलकर भी इनसे तेज आवाज में बात न करें।