दिल्ली। बाघों के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए हर वर्ष 29 जुलाई को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है। इसका निर्णय 2010 में रूस के सेंटपीटर्सबर्ग शहर में हुई टाइगर समिट में लिया गया था। इस समिट में बाघों के संरक्षण को लेकर चर्चा हुई थी। बाघ की आबादी वाले 13 देशों में इनकी संख्या में गिरावट और उन्हें विलुप्त होने से बचाने के लिए उनकी संख्या दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया था। भारत ने इसे 12 साल में पूरा किया। 2022 में भारत में बाघों की संख्या दोगुनी तो मध्य प्रदेश में तिगुनी हुई। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मध्य प्रदेश में बाघों के प्रबंधन को लेकर लगातार सुधार किया गया। 2010 में भारत में बाघों की संख्या 1706 और मध्य प्रदेश में 257 थी। यह संख्या 2022 की जनसंख्या के अनुसार बढ़कर अब भारत में दोगुनी होकर 3682 और मध्य प्रदेश में करीब तिगुनी होकर 785 हो गई। मध्य प्रदेश ने वर्ष 2022 की समय-सीमा से काफी पहले इस दोगुने लक्ष्य की उपलब्धि हासिल कर ली।
ऐसे बना मध्य प्रदेश टाइगर स्टेट
प्रदेश के बाघ प्रदेश बनने के पीछे बाघों की मॉनीटरिंग, प्रबंधन से लेकर गांवों का वैज्ञानिक विस्थापन भी प्रमुख है। पिछले करीब 15 सालों में टाइगर रिजर्व में दूरस्थ क्षेत्र में बसे 215 गांवों को विस्थापित किया गया। इसमें सर्वाधिक 75 गांव सतपुड़ा टाइगर रिजर्व से बाहर किए गए। दूसरा ट्रांसलोकेशन। कान्हा के बारहसिंगा, बायसन ओर वाइल्ड बोर का ट्रांसलोकेशन कर दूसरे टाइगर रिजर्व में उन्हें बसाया गया। इससे बाघ के लिए भोजन का आधार बढ़ा। तीसरा हैबिटेट का विकास। जंगल के बीच में जो गांव और खेती खाली हुए वहां घास के मैदान और तालाब विकसित किए गए। इससे शाकाहारी जानवरों की संख्या बढ़ी और बाघ के लिए भोपाल आसानी से उपलब्ध हुआ। उनकी सुरक्षा व्यवस्था में भी बलाव किए गए। पन्ना टाइगर रिज़र्व में ड्रोन से सर्वेक्षण और निगरानी रखी गई। वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल कर अवैध शिकार को पूरी तरह से रोका गया। क्राइम इन्वेस्टीगेशन और पेट्रोलिंग में तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाया गया। पन्ना टाइगर रिजर्व में अपना ड्रोन स्क्वॉड है। इसकी मदद वन जीवों की लोकेशन खोजने, उनके बचाव करने, जंगल की आग के स्त्रोत पता लगाने, मानव और पशु संघर्ष के खतरे को टालने करने में ली जाती है।
देश के 25 प्रतिशत तेंदुओं की संख्या अकेले एमपी में
वन्यजीव सुरक्षा के कारण तेंदुओं की संख्या में भी मध्य प्रदेश देश में सबसे आगे है। देश में 12 हजार 852 तेंदुए हैं। इसमें से मध्य प्रदेश में ही तेंदुओं की संख्या 4100 से ज्यादा है। देश में तेंदुओं की आबादी औसतन 60% बढ़ी है जबकि प्रदेश में यह 80% है। देश में तेंदुओं की संख्या का 25% अकेले मध्य प्रदेश में है।
मध्य प्रदेश के सात बाघ अभयारण्य-
बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान: 104 बाघ
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व उमरिया और कटनी जिलों में फैला हुआ है। 1,536.93 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले इस रिजर्व में 104 बाघों की समृद्ध बाघ आबादी है।
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान: 61 बाघ
कान्हा टाइगर रिजर्व मंडला और बालाघाट जिलों में फैला हुआ है और यह देश के प्रमुख बाघ अभयारण्यों में से एक है और राज्य का सबसे बड़ा राष्ट्रीय उद्यान है और बाघों की आबादी 61 है।
पेंच टाइगर रिजर्व: 61 बाघ
पेंच राष्ट्रीय उद्यान सिवनी और छिंदवाड़ा जिलों में फैला हुआ है। पेंच राष्ट्रीय उद्यान 1179.63 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में 61 बाघों की अपनी समृद्ध बाघ आबादी के लिए प्रसिद्ध है, जिससे हर 19 किलोमीटर पर बाघों की ट्रैकिंग की संभावना बनती है।
वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व: 15 बाघ
सागर, दमोह, नरसिंहपुर में फैला वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व मध्य प्रदेश का सबसे नया टाइगर रिजर्व है। 2339 वर्ग किलोमीटर में फैले इस टाइगर रिजर्व में 15 बाघ हैं।
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व: 40 बाघ
सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला से प्राप्त “सेवन फोल्ड्स” के नाम से जाना जाता है। अनुमान है कि रिजर्व में 40 बाघ हैं। सतपुड़ा रिजर्व में 10,000 साल पुरानी प्राचीन शैलचित्र भी हैं, जो इसे एक यादगार अनुभव बनाते हैं। यह यूनेस्को की प्राकृतिक श्रेणी में विश्व धरोहर स्थलों की संभावित सूची में शामिल है।
पन्ना टाइगर रिजर्व: 40 बाघ
पन्ना टाइगर रिजर्व पन्ना और छतरपुर जिलों में 1,598.10 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यहां 40 बाघ हैं। यह केन नदी के किनारे स्थित है।
संजय-दुबरी राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व: 5 बाघ
सदाबहार साल, बांस और मिश्रित वनों से युक्त संजय-दुबरी टाइगर रिजर्व सीधी और शहडोल जिलों में 1,674.5 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जो वन्यजीवों के लिए स्वर्ग है। यह रिजर्व बाघ संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और यहां लगभग 5 बाघ, पक्षियों की 152 प्रजातियां, स्तनधारियों की 32 प्रजातियां, रेपटाइल्स की 11 प्रजातियां, मीठे पानी की मछलियों की 34 प्रजातियां पाई जाती हैं।