रायपुर। सरकार में कई विभाग ऐसे होते हैं जिनकी बदनामी से सभी वाकिफ होते हैं, उनमें से एक है वन विभाग। हाल ही में इस विभाग के एक चर्चित बड़े अधिकारी ने अपने ही विभाग के मंत्री केदार कश्यप को अंधेरे में रखकर ऐसा आदेश निकाला जिससे सिर्फ एक कम्पनी को ही लाभ होगा।विभागीय बड़े अधिकारी की कारगुजारी शिकायत जब अपर मुख्य सचिव से की गई तो उन्होंने भी इस आदेश को रद्द करने में हाथ खड़े कर दिए।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, हर साल किसान वृक्ष मित्र योजना के तहत वन विभाग को सागौन, नीलगिरी और बांस के पौधे लगाने का टारगेट दिया जाता है, जिसकी छत्तीसगढ़ राज्य बीज एवं कृषि विकास निगम के माध्यम से खरीदी की जाती थी। इस खरीदी को।लेकर निगम का पांच कम्पनियों के साथ अनुबंध है। किसान वृक्ष मित्र योजना-2024 के तहत नीलगिरी के करीब 85 लाख, सागौन के 9.5 लाख और बांस के करीब 1.5 लाख पौधों की खरीदी कर रोपण किया जाना था। लेकिन राज्य सरकार द्वारा सिर्फ जेम पोर्टल से खरीदी किए जाने के कारण अब सीएसआईडीसी और बीज निगम से रेट कॉन्ट्रेक्ट का औचित्य समाप्त हो गया है। किसान हालांकि, बीज निगम का छत्तीसगढ़ की चार और राज्य के बाहर की एक कम्पनी के साथ अनुबंध था। लेकिन वन विभाग के एक शीर्षस्थ अधिकारी ने राज्य सरकार के इस निर्णय की आड़ में 3 जुलाई को एक ऐसा आदेश निकाला, जिसकी अर्हता सिर्फ एक कम्पनी जो राज्य के बाहर की थी, वहीं पूरी करती थी।
बड़े अधिकारी ने झाड़ा पल्ला
बता दें कि, राज्य के आपूर्तिकर्ताओं ने जब इस बात की शिकायत अपर मुख्य सचिव को की तो उन्होने आदेश को रद्द करने से साफ मना कर दिया।
वन विभाग के शीर्ष अधिकारी की मनमानी से कांग्रेस के उन आरोपों को एक बार फिर बल मिला है जिसमें आरोप लगाया गया था कि जेम पोर्टल से खरीदी का मतलब राज्य के बाहर के आपूर्तिकर्ताओं को काम अलाट करना है, जिससे राज्य के व्यापारी, आपूर्तिकर्ताओं का ही नुकसान होगा और बाहर के लोग छत्तीसगढ़ के अधिकारियों से सांठ-गांठ करके पैसा कमाकर निकल जायेंगें।
उल्लेखनीय है कि वन मंत्री केदार कश्यप ने इस साल पौधों की खरीदी के लिए बीज निगम में रजिस्टर्ड कम्पनियों से ही पौधे खरीदने के आदेश जारी किए थे। बीज निगम में रजिस्टर्ड पांच कम्पनियों में से एक बाहरी कम्पनी को फायदा पहुंचाने के लिए कोयम्बटूर स्थित एक संस्था का सर्टिफिकेट अनिर्वाय कर दिया गया जिससे छत्तीसगढ़ की चारों कम्पनियां डिबार हो जाएं। पिछले साल तक जब वन विभाग सीधी खरीदी करता था तब भी सागौन के पौधों के आर्डर बंगलोर की इसी कम्पनी को ही दिए जाते थे। मंत्री के आदेश के कारण जब बीज निगम की बाध्यता जरुरी की गयी तो इस कम्पनी का बीज निगम से अनुबंध करा दिया गया। इस बीच सरकार ने सीएसआईडीसी और बीज निगम के रेट कॉन्ट्रेक्ट की अनिवार्यता समाप्त कर दी तो अधिकारी ने अपर सचिव से ऐसा आदेश निकलवाया कि बाकी कम्पनिया सौगान पौधे की खरीदी की प्रतिस्पर्धा से ही बाहर हो जाएं ।