जगन्नाथ यानी कि जगत के नाथ जो ब्रह्मांड के भगवान और श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं. हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को ओडिशा के पुरी में प्रभु की भव्य रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है. इस यात्रा में लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं. भगवान जगन्नाथ के रथ के साथ दो और रथ इस यात्रा में शामिल होते हैं, जिसमें उनके भाई और बहन शामिल होते हैं. यात्रा के लिए तैयार होने के बाद तीनों रथों की पूजा की जाती है. उसके बाद सोने की झाड़ू से रथ मंडप और रथ यात्रा के रास्ते को साफ किया जाता है. क्या आप जानते हैं इस रथ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई, यात्रा में प्रभु जगन्नाथ के साथ और कौन से रथ शामिल होते हैं और कब प्रभु वापस अपने घर लौटते हैं?
कब से शुरू होगी यात्रा
-वैदिक पंचांग के अनुसार, जगन्नाथ रथ यात्रा 07 जुलाई को सुबह 08 बजकर 05 मिनट से शुरू होगी.
– यह यात्रा सुबह 09 बजकर 27 मिनट तक निकाली जाएगी.
– इसके बाद यात्रा दोपहर 12 बजकर 15 मिनट से फिर से शुरू होगी.
– इस बार यात्रा 01 बजकर 37 मिनट पर विश्राम लेगी.
– इसके बाद शाम 04 बजकर 39 मिनट से यात्रा शुरू होगी.
– अब यह यात्रा 06 बजकर 01 मिनट तक चलेगी.
क्या है मान्यता?
धार्मिक पुराणों के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की इस रथयात्रा में शामिल होने से 100 यज्ञों के बराबर पुण्य का फल मिलता है. यही कारण भी है कि दुनियाभर से लोग इस यात्रा में शामिल होने पहुंचते हैं और भगवान का आशीर्वाद लेते हैं. इसके अलावा, रथ यात्रा के दौरान नवग्रहों की पूजा की जाती है. ऐसा कहा जाता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होने मात्र से ही अशुभ ग्रहों का प्रभाव कम होता है और शुभ ग्रहों का प्रभाव बढ़ता है.
यात्रा में कौन-कौन से रथ शामिल
आपको बता दें कि पुरी में भगवान जगन्नाथ का 800 साल पुराना मंदिर है और यहां भगवान जगन्नाथ विराजते हैं. वहीं आषाढ़ माह में रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के साथ दो और रथ शामिल होते हैं. इनमें से एक में उनके भाई बलराम और दूसरे में बहन सुभद्रा होती हैं. इस तरह इस दिन कुल तीन देवताओं की यात्रा निकलती है. सबसे आगे बलराम का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है.
कैसे हुई इस यात्रा की शुरुआत
भगवान जगन्नाथ की यात्रा सदियों से चली आ रही है. ऐसा कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 12वीं शताब्दी में हुई थी. एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्ण और बलराम से कहा कि वे नगर को देखना चाहती हैं. इसके बाद अपनी बहन की इच्छा पूरी करने के लिए दोनों भाइयों ने बड़े ही प्यार से एक रथ तैयार करवाया. इस रथ में तीनों भाई- बहन सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकले थे और भ्रमण पूरा करने के बाद वापस पुरी लौटे. तभी से यह परंपरा चली आ रही है.