17 जून 1631 को आज ही के दिन शाहजहां की बेगम मुमताज इस दुनिया से रुख्सत हुई थी. अपने 14वें बच्चे को जन्म देने के तुरंत बाद ही मुमताज का निधन हो गया था.कहा जाता है कि मुमताज ने शाहजहां से चार वादे पूरे करने को कहा था, जिसमें से एक वादा ये था कि मरने के बाद मुमताज की याद में एक भव्य इमारत बनवाई जाए.मुमताज के निधन के 7 महीने बाद ताजमहल का निर्माण शुरू हुआ था. वादा पूरा करने में शाहजहां को 22 साल लग गए थे.शाहजहां ने आगरा में यमुना नदी के किनारे एक भव्य मकबरा बनवाना शुरू किया.
दुनियाभर से हुनरमंद कलाकार बुलाए गए। पत्थरों पर फूल तराशने के लिए अलग, तो अक्षर तराशने के लिए अलग कारीगर बुलवाए गए. कोई कलाकार गुंबद तराशने में माहिर था, तो कोई मीनार बनाने में. 20 हजार से भी ज्यादा कारीगर आगरा में आए जिन्हें ठहराने के लिए एक अलग बस्ती बसाई गई.
इसी तरह दुनियाभर से कीमती पत्थर और रत्नों को लाया गया. दिन-रात ताजमहल को बनाने का काम चलता रहा और करीब 22 साल बाद ताजमहल बनकर तैयार हुआ. आज ताजमहल को दुनिया के सात अजूबों में गिना जाता है.
1961: भारत में बने पहले फाइटर प्लेन ने भरी थी उड़ान
इतिहास में अब बात करते हैं भारत में बने पहले फाइटर प्लेन की. आजादी के बाद से ही हिन्दुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड (HAL) ट्रेनर एयरक्राफ्ट का निर्माण कर रही थी. दुनिया के बाकी विकसित देश सुपरसोनिक फाइटर एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल कर रहे थे. भारतीय सेना के पास इस तरह के विमान नहीं थे. प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसकी जिम्मेदारी HAL को दी.
उस समय HAL के पास फाइटर प्लेन की डिजाइन और निर्माण का अनुभव नहीं था. नेहरू ने जर्मन वैज्ञानिक कर्ट टैंक से बात की. नेहरू के कहने पर कर्ट अगस्त 1956 में भारत आ गए. उन्होंने HAL के डिजाइनर के साथ मिलकर फाइटर प्लेन बनाने की तैयारी शुरू की.
दो साल बाद टैंक की टीम ने फाइटर प्लेन का एक प्रोटोटाइप तैयार कर लिया था. इस प्रोटोटाइप में इंजन नहीं था और इंजन के लिए भारतीय वैज्ञानिकों को खासी मशक्कत करनी पड़ी. आखिरकार आज ही के दिन साल 1961 में पहली बार भारत में बने फाइटर प्लेन ने उड़ान भरी. इसे HF-24 Marut नाम दिया गया.
1885: फ्रांस से न्यूयॉर्क पहुंची थी स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी
आज का दिन स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से भी जुड़ा है. दरअसल, 4 जुलाई 1776 को अमेरिका ब्रिटेन से आजाद हुआ था. अमेरिका की आजादी की 100वीं सालगिरह पर फ्रांस के लोगों ने अमेरिका को एक गिफ्ट देने के बारे में सोचा. फ्रांस के राजनीतिज्ञ एडुअर्ड डी लाबौले ने प्रसिद्ध फ्रांसीसी मूर्तिकार फ्रेडेरिक ऑगस्टे बार्थेली के साथ मिलकर मूर्ति बनाने की योजना तैयार की. जुलाई 1884 में मूर्ति को बनाने का काम पूरा हो गया. अब बड़ा काम मूर्ति को फ्रांस से न्यूयॉर्क ले जाना था. विशाल मूर्ति में से 350 छोटे-छोटे हिस्से अलग किए गए और विशेष रूप से तैयार जहाज ‘आइसेर’ के जरिए न्यूयॉर्क लाया गया. साल 1885 में आज यानी 17 जून के दिन ही ये जहाज न्यूयॉर्क पहुंचा था. आपको जानकर हैरानी होगी कि स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी बनाने के लिए फ्रांस के लोगों ने क्राउड फंडिंग के जरिए एक लाख डॉलर का दान दिया था.
17 जून का इतिहास-
2012: साइना नेहवाल तीसरी बार इंडोनेशिया ओपन चैंपियन बनीं
1991: राजीव गांधी को मरणोपरांत भारत रत्न दिया गया
1963: अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों में बाइबिल के आवश्यक पठन पर पाबंदी लगाई
1947: बर्मा ने खुद को गणतंत्र घोषित किया
1839: भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेंटिक का निधन हुआ
1799: नेपोलियन बोनापार्ट ने इटली को अपने साम्राज्य में शामिल किया.