रांची/ विज्ञान के अनुसार, सूर्य ग्रहण (Solar eclipse) और चंद्र ग्रहण ( Lunar eclipse) का लगना एक खगोलीय घटना है. इसे कई मान्यताओं से भी जोड़ कर देखा जाता है. मान्यता है कि हमारे लिए खगोलीय घटना शुभ नहीं होती है. हिंदू धर्म में सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण में पूजा करने की भी मनाही होती है. इसके साथ ही ग्रहण के दौरान मंदिरों के कपाट भी बंद कर दिए जाते है. बहुत से लोगों के मन में ग्रहण को लेकर बहुत सवाल आते है कि ग्रहण में पूजा करनी चाहिए या नहीं. तो आइये आज आपको इसके बारे में बताते है.
क्यों लगता है सूर्य और चंद्र ग्रहण?
पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों में मिलकर समुद्र मंथन किया. इस दौरान 14 रत्नों में से एक अमृत कलश भी बाहर आया. जिसको लेकर देवताओं और असुरों के विवाद हो गया. विवाद होता देख भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप लेकर सभी को बारी बारी से अमृतपान कराने को कहा. लेकिन अब जब देवताओं को अमृत बांटा गया तो एक स्वरभानु नामक राक्षस ने छल से चंद्रदेव और सूर्यदेव के बीच बैठकर दिव्य अमृत का पान कर लिया. लेकिन दोनों देवताओं उस राक्षस का भेद जान गए थे. इसके बाद इसकी जानकारी दोनों देवताओं ने भगवान विष्णु को दी. इसकी जानकारी मिलते ही भगवान विष्णु इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने अपने सुर्दशन चक्र से उस राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया. लेकिन राक्षस ने अमृत की कुछ बूंदों को चख लिया था इसलिए उसकी मृत्यु नहीं हुई. और उसका सिर और धड़ अलग-अलग जीवित रहा. राक्षस का सिर वाला हिस्सा राहु और धड़ वाला हिस्सा केतु कहलाया. इसी वजह से हर साल चंद्रमा समय-समय पर चंद्रमा और सूर्य का ग्रास करने आते हैं. इसी वजह से ग्रहण लगता है.
ग्रहण के दौरान क्या नहीं करना चाहिए
1 धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, ग्रहण के दौरान पूजा नहीं करनी चाहिए. वहीं सभी मंदिरों के कपाट ग्रहण के दौरान सूतक काल में ही बंद कर दिए जाते है. लेकिन आंतरिक मन से भगवान का भजन-कीर्तन करना शुभ माना जाता है.
2 ग्रहण के दौरान कुछ भी खाने और पीने की भी मनाही होती है.