नेशनल न्यूज़। एक ताजा अध्ययन में दावा किया गया है कि बैंड-एड और क्यूराड जैसे जाने-माने ब्रांडों के बैंडेज में जहरीले ‘फॉरेवर कैमिकल’ (ऑर्गेनिक फ्लोरीन) के सबूत मिले हैं। ऑर्गेनिक फ्लोरीन, हानिकारक पर-एंड पॉली-फ्लोरो अल्काइल सब्सटेंस यानी पी.एफ.ए.एस. का एक घटक है, जो पर्यावरण में लंबे समय तक बना रह सकता है और आसानी से नष्ट नहीं होता है। पी.एफ.ए.एस. रसायन बैंडेज खुले घाव पर लगाने से रक्त प्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं। एक बार जब वे सेल्स में शामिल हो जाते हैं तो प्रतिरक्षा प्रणाली, गुर्दे और अन्य अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि बैंडेज का खुले घाव पर इस्तेमाल कैंसर का कारण भी बन सकते हैं।
प्रमाणित प्रयोगशाला द्वारा की गई जांच
पर्यावरण और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए काम करने वाले संगठन, ममावेशन और एनवायर्नमेंटल हेल्थ न्यूज द्वारा किए नए अध्ययन में कहा गया है कि शोधकर्ताओं ने 18 अलग-अलग ब्रांड के 40 बैंडेज की जांच की है, जिनमें से 65 फीसदी में यानी 26 में से ऑर्गेनिक फ्लोरीन नामक ‘फॉरेवर केमिकल’ की मौजूदगी पाई गई है। अध्ययन का हवाला देते हुए डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इन 26 बैंडेज में ऑर्गेनिक फ्लोरीन का स्तर 10 भाग प्रति मिलियन या उससे अधिक पाया गया था।
इसी तरह सांवले रंग की त्वचा वाले लोगों के लिए मार्केटिंग किए जाने वाले 63 फीसदी यानी 16 में से 10 बैंडेज में फ्लोरीन का स्तर दस पी.पी.एम. से ऊपर था। इन बैंडेज की जांच एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी द्वारा प्रमाणित प्रयोगशाला द्वारा की गई। जांच में ऑर्गनिक फ्लोरीन का स्तर 11 से 328 भाग प्रति मिलियन (पी.पी.एम.) के बीच पाया गया है। इस अध्ययन में जिन ब्रांड्स को शामिल किया गया था, उनमें से बैंड-एड, सीवीएस हेल्थ, इक्वेट, राइट ऐड, अमेजन्स सोलिमो, टारगेट और क्यूराड में फ्लोरीन का स्तर 100 भाग प्रति मिलियन से अधिक दर्ज किया गया। वहीं राहत की बात यह रही कि 3एम और ट्रू कलर सहित कुछ अन्य ब्रांड के बैंडेज में कार्बनिक फ्लोरीन और अन्य हानिकारक यौगिकों के पाए जाने के सबूत नहीं मिले हैं।
बैंडेज कैसे पहुंचा सकती है नुकसान
यह अध्ययन अमरीका में किया गया है, लेकिन यह दुनिया भर के उन लाखों लोगों के स्वास्थ्य को लेकर चिंता पैदा करता है, जो रोजाना बैंडेज का इस्तेमाल करते हैं। यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि इन बैंडेज में पी.एफ.ए.एस. क्यों मौजूद है। नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ के पिछले अध्ययनों से पता चला है कि त्वचा के साथ पी.एफ.ए.एस. का संपर्क स्वास्थ्य के लिहाज से उतना ही खतरनाक है, जितना भोजन या पानी के जरिए इनके शरीर में पहुंचने से स्वास्थ्य को खतरा पैदा हो सकता है। ऐसे में खुले जख्मों के सीधे संपर्क में आने के कारण इनकी मौजूदगी कहीं ज्यादा चिंताजनक है। शोधकर्ताओं को डर है कि यह केमिकल खुले घावों के जरिए रक्त प्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
पयार्वरण के लिए घातक
हाल के दशकों में वैज्ञानिकों को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि यह पी.एफ.ए.एस. इंसानों और जानवरों के स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं। साथ ही वातावरण में इनकी मौजूदगी पर्यावरण के लिहाज से भी नुकसानदेह है। इसको देखते हुए इनमें से कई केमिकल्स को दुनिया भर में प्रतिबंधित कर दिया गया है। बता दें कि इन ‘फॉरएवर केमिकल्स’ से जुड़े खतरों को देखते हुए न्यूजीलैंड सरकार ने कॉस्मेटिक उत्पादों में इनके उपयोग को प्रतिबंधित करने का फैसला लिया है। इसके चलते 31 दिसंबर, 2026 से न्यूजीलैंड में कॉस्मेटिक उत्पादों में पी.एफ.ए.एस. को पूरी तरह बैन कर दिया जाएगा।