लोग इलेक्ट्रिक गाड़ी लेने से इसलिए कतराते हैं क्योंकि इसमें चार्जिंग का झंझट रहता है और उन्हें डर रहता है कि रास्ते में उन्हें कहीं चार्जिंग स्टेशन मिलेगा भी या नहीं, लेकिन अगर आपसे कहा जाए कि घर पर चार्ज किए बगैर ही आपकी गाड़ी दिन-रात सड़क पर दौड़ेगी तो आप यकीन नहीं करेंगे.
लेकिन जनाब ये बात अब पूरी तरह से हकीकत बनने जा रही है और केरल इस सपने को हकीकत में बदलने वाला देश का पहला राज्य बनने जा रहा है. केरल में अगले वित्त वर्ष से वायरलेस ईवी चार्जिंग की व्यवस्था शुरू होने जा रही है, जिसमें इलेक्ट्रिक गाड़ी सड़क पर चलते-चलते ही चार्ज होगी.
कैसे साकार होगा ये सपना
इसके लिए सड़क की सतह के नीचे तांबे की कॉइल लगाई जाएंगी, जिससे आपकी गाड़ी सकड़ पर दौड़ते हुए ही चार्ज हो जाएगी.केरल में बिजली विभाग के अपर मुख्य सचिव केआर ज्योतिलाल ने कहा ‘यह बिल्कुल ऐसा होगा, जैसे आप ईवी के बजाय सड़क को चार्ज कर रहे हैं. हम जल्द ही इसका परीक्षण शुरू करने की कोशिश में हैं.’
कितना आता है खर्च
एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे प्रोजेक्ट पर करीब 20 लाख डॉलर प्रति मील का खर्च आता है यानी ये प्रोजेक्ट काफी महंगा होता है और इसलिए इसके कारगर होने की संभावना पर भी संशय है. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि तकनीक के बेहतर होने के साथ ही इसे लगाने का खर्च भी कम हो जाएगा.
इलेक्ट्रेऑन कंपनी ने कहा कि इस तकनीक से बैटरी की क्षमता 90 फीसदी तक कम की जा सकती है जिससे हर बैटरी पर 53 हजार डॉलर की बचत होगी और हर बस से 48 टन कम कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन होगा. दुनिया के दूसरे हिस्सों में छोटी-छोटी दूरी के लिए इस तकनीक को आजमाया गया है.
‘व्हीकल टु ग्रिड’ तकनीक भी लागू करने जा रहा केरल
वायररलेस चार्जिंग के अलावा केरल जल्द ही ‘व्हीकल टु ग्रिड’ तकनीक को भी आजमाने जा रहा है. इसमें वाहन मालिक और और पवन ऊर्जा से अपने वाहन चार्ज करने के बाद वे वाहन से बिजली ग्रिड को बेच सकते हैं, जिससे उन्हें आमदनी होगी.
इसके अलावा केरल सरकार की मंशा 2030 तक राजधानी तिरुवनंतपुरम को देश की सबसे बड़ी सोलर सिटी बनाने की भी है, इसके लिए हर घर की छत पर सोलर पैनल लगाए जाएंगे.
एक रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर 2023 तक देश में सबसे ज्यादा दो पहिया ईवी केरल में ही बिकीं. केरल में कुल 12.2 फीसदी टू-व्हीलर ईवी हैं, महाराष्ट्र में 9.5 फीसदी, कर्नाटक में 10.6 फीसदी, गुजरात में 6.9 फीसदी और तमिलनाडु में 5.2 फीसदी ईवी हैं.
फिएट, सिंट्रो, क्राइसलर और प्यूजो जैसी कारों की पेरेंट कंपनी स्टेलैंटिस पहले ही यह शुरू कर चुकी है. स्टेलैंटिस इटली के कियारी में पहले ही डायनमिक वायरलेस पावर ट्रांसफर (DWPT) तकनीक दिखा चुकी है. इसमें इजराइल की कंपनी इलेक्ट्रेऑन वायरलेस की वायरलेस तकनीक का इस्तेमाल किया गया था. दुनिया में केवल कुछ ही कंपनियों के पास यह तकनीक है.
कैसे काम करती है ये तकनीक
इस तकनीक को लेकर इलेक्ट्रेऑन वायरलेस ने बताया कि इसमें जमीन के ऊपर ढांचा होता है जिसे ग्राउंड मैनेजमेंट यूनिट (AMU) कहते हैं. यह एएमयू ग्रिड से बिजली लेकर सड़के के नीचे मौजूद चार्जिंग ढांचे को देती है और ढांचे में मौजूद तांबे की कॉइल इसे वाहनों में लगे रिसीवर तक पहुंचा देती है. रिसीवर उस बिजली को सीधे इंजन तक पहुंचा देता है.