सुप्रीम कोर्ट: तीन तलाक कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है. इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच कर रही है. याचिकाओं में इस कानून के तहत अपराधीकरण के प्रावधान को चुनौती दी गई है. गौरतलब है कि मुस्लिम महिलाओं के तहत तीन तलाक को दंडनीय अपराध बनाया गया है और इसमें तीन साल तक की सजा का प्रावधान है. याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह कानून मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ पक्षपातपूर्ण है और इसे निरस्त किया जाना चाहिए. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने केंद्र सरकार से पूछा कि तीन तलाक कानून लागू होने के बाद अब तक कितने मामले दर्ज किए गए हैं. इस पर केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल (SG) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि दंड देने वाला कोई भी अधिनियम एक विधायी नीति का हिस्सा होता है. उन्होंने कहा कि सरकार महिलाओं से जुड़े अन्य कानूनों में भी सजा का प्रावधान रखती है, और तीन तलाक कानून में केवल तीन साल की सजा दी गई है.
कोर्ट ने दर्ज मामलों की मांगी लिस्ट
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इस कानून के तहत केवल तलाक देने को ही अपराध घोषित कर दिया गया है, जो एक गंभीर सवाल खड़ा करता है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूरे देश में दर्ज मामलों की सूची पेश करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने पूछा कि क्या किसी अन्य राज्य ने इस कानून को चुनौती दी है और क्या किसी राज्य सरकार ने इसे लागू करने में कोई समस्या बताई है. इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी राज्यों में तीन तलाक कानून के तहत दर्ज एफआईआर का केंद्रीकृत डेटा उपलब्ध कराया जाए.
इस मुद्दे पर मुस्लिम समुदाय में मतभेद
यह मामला न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. तीन तलाक कानून को लेकर शुरुआत से ही मुस्लिम समुदाय में मतभेद रहा है. जहां कई महिलाओं ने इस कानून का समर्थन किया, वहीं कुछ संगठनों और याचिकाकर्ताओं ने इसे मुस्लिम पुरुषों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ बताया है. अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर विस्तार से सुनवाई करेगा.
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